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यु॒वं प्र॒त्नस्य॑ साधथो म॒हो यद्दैवी॑ स्व॒स्तिः परि॑ णः स्यातम्। गो॒पाजि॑ह्वस्य त॒स्थुषो॒ विरू॑पा॒ विश्वे॑ पश्यन्ति मा॒यिनः॑ कृ॒तानि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvam pratnasya sādhatho maho yad daivī svastiḥ pari ṇaḥ syātam | gopājihvasya tasthuṣo virūpā viśve paśyanti māyinaḥ kṛtāni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम्। प्र॒त्नस्य॑। सा॒ध॒थः॒। म॒हः। यत्। दैवी॑। स्व॒स्तिः। परि॑। नः॒। स्या॒त॒म्। गो॒पाजि॑ह्वस्य। त॒स्थुषः॑। विऽरू॑पा। विश्वे॑। प॒श्य॒न्ति॒। मा॒यिनः॑। कृ॒तानि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:38» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब परस्पर भाव से राज प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजा और प्रजाजनो ! (युवम्) आप दोनों जैसे (विश्वे) सम्पूर्ण (मायिनः) उत्तम बुद्धिवाले (तस्थुषः) स्थिर पुरुष के (कृतानि) उत्पन्न किये हुए (विरूपा) अनेक प्रकार के रूपों से युक्त पदार्थों को (पश्यन्ति) देखते हैं, वैसे (प्रत्नस्य) प्राचीन (गोपाजिह्वस्य) रक्षा करनेवाली जिह्वावाले पुरुष का (यत्) जो (महः) बड़ी (दैवी) देवताओं की (स्वस्तिः) स्वस्थता अर्थात् शान्ति है उसको (नः) हम लोगों के लिये (परि, साधथः) सब प्रकार सिद्ध करते हैं वैसे सबके सुखकारक हूजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बुद्धिमान् शिल्पीजन अनेक प्रकार की वस्तुओं को रचके सबको शोभित करते हैं, वैसे ही राजा आदि जन प्रजा में स्वस्थता को स्थिर करके सबके कार्यों को सिद्ध करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ परस्परेण राजप्रजाविषयमाह।

अन्वय:

हे राजप्रजाजनौ युवं यथा विश्वे मायिनस्तस्थुषः कृतानि विरूपा पश्यन्ति तथा प्रत्नस्य गोपाजिह्वस्य यन्महो दैवी स्वस्तिरस्ति ता नः परिसाधथः सर्वेषां सुखकरौ स्यातम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युवम्) युवाम् (प्रत्नस्य) पुरातनस्य (साधथः) (महः) महती (यत्) या (दैवी) देवानामियम् (स्वस्तिः) स्वास्थ्यम् (परि) (नः) अस्मभ्यम् (स्यातम्) (गोपाजिह्वस्य) गोरक्षका जिह्वा यस्य तस्य (तस्थुषः) स्थिरस्य (विरूपा) विविधानि रूपाणि येषु तानि (विश्वे) सर्वे (पश्यन्ति) (मायिनः) प्रशस्तप्रज्ञाः (कृतानि) निष्पन्नानि ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विपश्चितः शिल्पिनो विविधरूपाणि वस्तूनि निर्माय सर्वान् सुभूषयन्ति तथैव राजादयो जनाः प्रजायां स्वास्थ्यं संस्थाप्य सर्वेषां कार्याणि साध्नुवन्तु ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बुद्धिमान कारागीर अनेक प्रकारच्या वस्तू निर्माण करून सर्वांना सुशोभित करतात तसेच राजा इत्यादी लोकांनी प्रजेमध्ये स्वस्थता निर्माण करून सर्वांचे कार्य सिद्ध करावे. ॥ ९ ॥